संस्कृति और पहचान पर पड़ा, ‘पर्दा’

Dr Gautam Ghosh
6 min readMay 30, 2020

--

आज भी महिलाओं पर होने वाली परिचर्चाओं में ,मुस्लिम समाज में प्रचलित परदे का रिवाज़ मुख्य विषय होने के साथ ही आधुकनिकता, समकालीन समाज में धर्म की स्वतंत्रता और स्थान पर होने वाले वाद विवाद का भी मुख्य विषय होता है।

इस्लामिक दृष्टिकोण मानता है कि ,पर्दा करना इस्लामिक संस्कृति की अनिवार्य पहचान है और उनके अनुसार तेजी से फैलती बे-पर्दा पाश्चात्य संस्कृति के कारण जिसके अस्तित्व को लगातार चुनौती दी जा रही है। इस्लामिक कपोल कल्पनाओ के अनुसार परदे का प्रचलन प्रामाणिक इस्लामी पहचान को संरक्षित रखने के लिए इसे जारी रहना आवश्यक है।

90s में हमने हिजाबी संस्कृति में पुनःजागरण होते हुए देखा ,हिजाब के इस तथ्य का पुनः प्रसार, परदे के मुद्दे पर इस्लामिक राजनीति और रूढ़िवादी धार्मिक उपदेश का नतीजा था,जिसने इस पहचान को अपने दावे में,इसे सामाजिक तथा राजनैतिक धर्म प्रचार रणनीति का एक कूटनीतिक प्रश्न बना दिया ।

1) ग़द य बसर और हफ़द अल फ़राज (कुरान 24: 30–31) :यह इस पर विश्वास करने वाले पुरुषों को बताती है की वे अपने हुस्न(आकर्षण ) (ग़द अल बसर) पर नियंत्रण लगाए और अपने गुप्तांगो को सुरक्षित रखे … तथा (हफ़द अल फ़राज) “यह इस पर विश्वास करने वाली महिलाओ को बताती है की वे अपने हुस्न(आकर्षण ) पर नियंत्रण लगाए और अपने गुप्तांगो को सुरक्षित रखे …. “

इसको समझना काफी मुश्किल और जटिल है.लेकिन साथ ही यह समझना भी ज़रूरी है कि-पवित्र कुरान , महिलाओं के साथ ही साथ पुरुषों को भी अपनी खूबसूरती(आकर्षण ) को छुपाने और अपने शरीर के गुप्तांगों को सुरक्षित रखने के बारे में बताती है , जो कहना चाहती है की यह, महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी एक निश्चित शराफ़त पूर्ण नज़रिए से देखने और शारीरिक नग्नता से बचाने का सवाल है।

खोमोरिहिना (क़ुरान 24 :31 )ख़िमार शब्द का बहु वचन है ,जो इस नाम के अर्थ अनुसार एक रुमाल या स्कार्फ़ से मिलता है, और यह ,इस पर भरोसा रखने वाली महिलाओ को अपने जादू /आकर्षण (जिनतोहन्ना )जो पहले से ही स्पष्ट है ,उसे छोड़ कर ,बाकि सबको प्रदर्शित ना करने के बारे में कहता है और कहता है की उन्हें, अपने वक्षस्थल पर आवरण डालना चाहिए और अपने आकर्षण को अपने पति, अपने पिता, अपने पति के पिता और अपने पुत्रो के अलावा किसी के सामने दिखाना नहीं चाहिए.

इस आयत में महिलाओ से विशेष तौर पर अनुरोध किया गया है की वे अपने परदे या घूँघट अपने वक्षस्थल तक रखे और वहाँ से घूँघट(खोमोरिहिना ) के किनारों को मोड़ दे ,और अपना कुछ आकर्षण (जिनतोहौना )केवल कुछ क़रीबी पारिवारिक सदस्यों को दिखाए। हालांकि आकर्षण के रूप में किस चीज़ पर इशारा किया जा रहा है वह स्पष्ट नहीं है। इसके सिवा यहाँ पर किसी सीमा के बारे में वर्णन नहीं है की क्या दिखना चाहिए और क्या नहीं। इसलिए ज्यादातर उलेमाओं ने इस आयात में अवरोध डाल कर अपनी सहूलियत के अनुसार अर्थ निकला और इसे महिलाओ में सर को ढक केवल चेहरा और हाथ दिखाने के नियम के रूप में इस्तेमाल किया।

इसलिए यह कमोबेश वस्त्रों और शारीरिक दिखावट से संबंधित चार मान्यताएं हैं, और इन चारों मान्यताओं में से एक भी हिजाब शब्द की तरफ इशारा नहीं करती, जिसे सामान्य तौर पर घूंघट या सर पर बांधने वाले स्कार्फ़ के रूप में वर्णित किया जाता है.

यह सच है की, कुरान का हिजाब शब्द वास्तविकता में किसी भी और कभी भी किसी पोशाक, घूंघट या किसी भी परिधान को उल्लेखित नहीं करता।इसका अर्थ, हमेशा अलगाव या परदे के रूप में लगभग सात बार प्रयोग किया गया है।

लेकिन महिलाओं में पर्दे के सिद्धांत को सत्यापित करने के लिए जिस आयत को सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया है ,उसके अंदर हमें एक बार फिर हिजाब शब्द दिखाई देता है, जो कहता है: मुझ पर विश्वास करने वाले मेरे अनुयायियों , पैगंबरो के घरों के अंदर बिना आमंत्रण के नहीं जाना चाहिए और अगर आपको पैगंबर की पत्नियों से कुछ कहना है तो ऐसा आपको घुंघट ( हिजाब)के पीछे से करना चाहिए. कुरान 33;53.हम ने ध्यान दिया कि शारीरिक रूप रंग के संदर्भ में कुरान , अपनी दो आयतो खिमार और जिलबाब (कुरान 24.31 और कुरान 33.59) को छोड़ कर, बिना किसी विशेष भेद के महिलाओं और पुरुषों दोनों में, शरीर के बारे में अपने नैतिक दिशा निर्देशों को संचारित करता है।

इसके बारे में इस्लाम को मानने वालो की एक पुस्तक में मिली अतिरिक्त और सटीक जानकारी पर ध्यान दिए बिना देखा जाए तो, केवल इन दो आयतो में ही एक ड्रेस कोड का उल्लेख है।

दुर्भाग्य से आजकल ऐसा प्रतीत होने लगा है की संपूर्ण इस्लामिक नीति महिलाओं के कपड़े पहनने के ढंग तक ही सीमित हो गयी है ,या केवल शरीर तक ही सीमित हो गयी है जैसे किस तरह से उनका पूरा शरीर किस प्रकार के कपड़ों की मोटाई और रंग आदि के नियम अनुसार ढका होना चाहिए आदि।

अब जबकि कुरान पुरुषों और स्त्रियों के विशेष परिधान या विशेष बाहरी स्वरूप के बारे में दबाव नहीं डालता, तब स्त्रियों के साथ ही साथ पुरुषों की शारीरिक नीति के बारे में संपूर्ण विश्व में दिए गए आध्यात्मिक संदेशों को दरकिनार करके,केवल उनके वस्त्रों के पहनने के ढंग का कुछ आयतों के द्वारा विश्लेषण करना काफी नहीं है .

इसलिए, कुरान खुद पर विश्वास करने वाले पुरुषों और महिलाओ, को शारीरिक और नैतिक दोनों तरह से “शालीनता” और “संयम” पूर्ण व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है,। महिलाओं के संबंध में,एक निश्चित सामान्य और सूक्ष्म-अभिव्यक्ति , आध्यात्मिक संदेश द्वारा उन्हें अपने सामाजिक संदर्भ के साथ ही अपने आध्यात्मिक विश्वासों को समेट कर उन्हें सक्षम बनाने के लिए दी गयी स्वतंत्रता का प्रमाण है.

इसलिए कुरान ने धार्मिक वस्त्र जो कि कठोरता से इस्लामिक हो की, जरूरत पर कोई कानून नहीं बनाया,जैसा कि वर्तमान में हम दिखाते हैं. इसका प्राथमिक आध्यात्मिक लक्ष्य कठोर या स्थिर पोशाक मानकों का निर्धारण करना नहीं है , जो सभी के लिए एक बार”निश्चित” कर दिए जाएं, बल्कि शरीर और दिमाग को एक दूसरे से जोड़ने का नज़रिया या नीति है

यह स्वीकार करना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस्लाम के आध्यात्मिक संदेश की इस प्रथम धारणा को ज्यादातर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है या , शब्द वादी शिक्षा की कीमत के पर पूरी तरह से इसकी अवहेलना कर दी जाती है। जो कुरान में महिलाओं को तथाकथित “हिजाब पहनने के दायित्व” के बारे में दी गई शिक्षाओं के महत्व को कम कर देती है.

फिर भी, कुरान ने कभी भी कोई औपचारिक ड्रेस कोड की बाध्यता नहीं पर दवाब नहीं डाला है ,वस्त्रों के मानक तय करना और उसका दवाब डालना या आदेश देना आध्यात्मिक नीति और सार्वभौमिक सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।

खीमार या सर पर बांधने वाले स्कार्फ़ का मुद्दा इस्लाम के धार्मिक सदाचार और नीति से संबंधित है,और यह मौमलात के इस्लामिक विज्ञान, सामाजिक दायरे या इंसानी संबंध के अंतर्गत आते हैं, ना कि धार्मिक रिवाज इबादत, के अंतर्गत।

एक धार्मिक आस्था जो विश्वास की दरखास्त करती है, तभी अर्थ पूर्ण लगती है जब वह बिना दिखावट के होती है.आध्यात्मिक तौर पर कहा जाए तो यदि सर पर स्कार्फ़ या खीमार पहनने के बारे में इस्लामिक बाध्यता की बात करें तो यह स्वीकार्य नहीं हो सकती, क्योंकि इस विषय में कुरान स्पष्ट है: “धर्म में किसी प्रकार का दबाव नहीं हो सकता!”यह इस्लाम का एक आधार भूत सिद्धांत है. इसलिए यहां पर है स्पष्ट है कि कुरान का मुख्य उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं को सांसारिक जुड़ाव और प्रलोभनों से मुक्त करना है , जो हर विशेष अवधि के लिए अलग है, और जो मानव सभ्यता के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ प्रमुख विचार धाराओं की ठोस पुनरावृति है।

कुरान पुरुषों और महिलाओं को शालीनता और आपसी सम्मान की संस्कृति का स्वामित्व लेने के लिए आमंत्रित करता है: “निश्चित रूप से सबसे अच्छा वस्त्र तक़वा का है; यह भगवान के संकेतों में से एक है…” निस्संदेह, यह आयत अपने आप तैयार हो जाती है, इसकी मुख्य शिक्षा जिसे ध्यान में रखना चाहिए और वर्तमान समय में जब ,कट्टरपंथी और उदारवादी दोनों ही अराजकता फैला रहे है ,लोगो में दिखावट और क्रोध की अधिकता है इसे लागू करना चाहिए. इस्लाम की नीति के अनुसार: लिबास-ए-तक्वा, यानी फूहड़पन का वह वस्त्र जो अनिवार्य रूप से हर पुरुष और हर महिला के बाहरी कृत्यों और कार्यों को दर्शाता है, यह नीति फूहड़पन की है. सदाचार की दृढ़ता और शालीनता ही सृष्टि के निर्माता कि आंखों के लिए श्रेयस्कर और उत्तम है।

Translated by ….. Shikha s.

--

--

Dr Gautam Ghosh
Dr Gautam Ghosh

Written by Dr Gautam Ghosh

Dr Ghosh is often referred to as the moving think tank of Asia . A Prolific Author,, Proficient Advocate , Philanthropist, -a public figure loved by most

No responses yet